Friday, January 30, 2009

SLUMDOG MILLIONAIRE: एक तथ्य या मिथ्या

स्लमडॉग मिलियनएयर पर भारत में विरोध, भारत के विरोधाभास का जीता-जागता नमूना है। लोग धारावी में रहते हैं, ये सच है। हर जगह की तरह वहां रहते लोग भी अपनी जिंदगी को सफल बनाना चाहते हैं, ये भी सच है। ये बात भी झूठ नहीं कि कोई राजी खुशी भिखारी नही बनना चाहता, यहां बहुतों को इस राह पर चलने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे में फिर जब देश के सबसे महान अभिनेता(??) अमिताभ बच्चन से लेकर हमारे बेहद निक्कमे NGO'S चिल्लाना शुरू करते हैं कि ये फिल्म
झूठ
है, एक प्रयास है देश की बुरी तस्वीर पेश करने का तब समझ नही आता कि ये सबको इतना नादान क्यो समझते हैं। माफ कीजिएगा लेकिन तथ्य और मिथ्या में फर्क बेशक सबके समझने की बात ना हो लेकिन कुछ के पल्ले तो जरूर पड़ती है।

अब बात करते हैं डैनी बॉएयल के इस करतब की। ये फिल्म कहीं कहीं लोगों के grey shades दिखाती है... लेकिन ये सच है। और इससे भी बड़ा सच ये है कि फिल्म किसी के exploitation की नही, बल्कि एक मामूली इंसान के हौसले की जीत है। ओबामा की भाषा में कहें तो ये फिल्म उम्मीद जगाती है कि YES! wE CAN. अमिताभ जी, अपनी गाड़ी से बाहर निकलिए, प्रतीक्षा के बाहर भी दुनिया है... जो दिखने में बेशक हसीन ना हो लेकिन जो हसीन भविष्य के सपने देखती है।

आप बात करते हैं भारत की dirty underbelly को दर्शाने का... मेरा सवाल है कि इस फिल्म ने और कुछ नही तो आपको उस underbelly में रहने वालों की दिक्कतें तो दिखाई। जिन्हे देख कभी मेरी तरह आप भी सन्न रहे होंगे, कभी हंसे होगें, कभी अपिरिचित भविष्य को सोच ड़रे होंगे... लेकिन इस बात को मानते हुए कि हां इस IT और tech savvy देश की ये भी एक परत है।

इसके मुकाबले भारतीय सिनेमा की जय हो। बारिश में नाच गाना, प्यार और धिशुम धुशुम, खूब सारा glycerine बहाना.. यही तो हमारे प्यारे बॉलीवुड की USP है। हाल की फिल्मों के क्या कहने... झूम बराबर झूम, धूम.... (लिस्ट खत्म कर पाना मेरे बस की बात नही। मुझे इस मामले में हार स्वीकार है) जैसी thinking फिल्मस भारत की क्या छवि पेश करती हैं इसके बारे में कुछ ना ही कहें तो शायद बेहतर रहेगा।

मेरी माने तो इस फिल्म को आपत्ति नही भूरी भूरी प्रशंसा ही मिलनी चाहिए। जो इतने सालों से यहां के निर्देशक करने में असफल रहे वो एक british citizen ने कर दिखाया। ये साफ कर दिया कि भारत में गरीबी है तो हौसला भी, तपते सूरज की तरफ देखने का इरादा भी, ऊचाईयों के मायने बदलने की अत्मनिर्भरता भी। डैनी तुम्हारी वाकई जय हो।

1 comment:

  1. good command over the language.. But I beg to differ on a few points

    first of all many films of the same ilk have been made by indian directors like Salaam bombay etc. But they never got this much acclaim or recognitiion barring a few festival circuits. Only because an Englishman has made this movie that we all are going ga-ga over it.

    second from a movie making pt of view the movie was full of directorial inconsistencies , the latest being the song Darshan do Ghanshyaam being wrongly attributed to Surdas.

    Third The story had so many loopholes like Jamal and all speaking flawless english , a celebrity of the stature of Jamal being tortured and locked overnight in police custody ... Granted you might say them to be cinematic liberties but when a film is being rooted for Oscar one can`t ignore such liberties...

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